Kashmir Files : कश्मीर फाइल्स और दर्द की इंतिहा एक कश्मीरी वृद्ध की आपबीती

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मुझसे ये मूवी देखी ही नही जाएगी। दिल्ली में एक कश्मीरी हिन्दू से मिला था। मयूर विहार के जिस नजदीकी पार्क में प्रभात व संध्या बेला में घूमने जाया करता था। उसके गेट पर एक बंगाली दादा चुइंगम, कैंडी, पानी कोल्डड्रिंक, सिगरेट व गुटखा आदि बेचा करते थे। कभी- कभार उनके यहां से 10 रुपये वाली वाटर बोटल खरीद लेता था। मोदी जी के हाई लेवल वाले समर्थक थे वो। कभी कभार वो खुद को सही साबित करने के लिए मुझसे पूछ लेते थे। का दादा मेरी बात सही तो है ना? मैं भी सही को सही अथवा गलत को तर्क द्वारा सही साबित कर देता था।😀


संध्या बेला था रिमझिम वर्षा हो रही थी। उन्ही के दुकान के पास रुक गया, तभी एक गौर-वर्ण के वृद्ध भी आये और मेरे पास ही रुके। 


बंगाली दादा ने उन्हें प्रणाम किया और मुझे उनका परिचय देते हुए कहा  दादा ये यही दिल्ली में बस गए कश्मीरी हिन्दू हैं। कई एकड़ में इनके सेब के बगान थे कश्मीर घाटी में।

वृद्ध व्यक्ति ने मुझे देखकर कश्मीरी में कुछ पूछा नही समझ पाया तो हिंदी में उन्होंने पुनः पूछा बाबू समझ गया आप कश्मीरी नही हो लेकिन पक्का पहाड़ी हो। मैंने मुस्कुराते हुए कहा नही दादाजी मैं बिहारी हूँ।


बारिश की रिमझिम फुहारों में बातचीत आगे बढ़ी दिल्ली की राजनीति, कश्मीर समस्या, 370 इत्यादि से होते हुए उनके कश्मीर छोड़ने की बात मैंने छेड़ दी। पहले तो वो कुछ बताना नही चाहते थे लेकिन जिस प्रकार मैंने पूछा उनकी आंखों से आंसू आने लगे। उन्होंने खुद के बारे में कहते हुए कहा कि निहायत ही बेगैरत हूँ जो अब तक जिंदा हूँ। जो कुछ उन्होंने उस टाइम देखा उन्हें देखने से पहले मर जाना चाहिए था।  उन्होंने कहा उनके साथ व उनके सामने वो सब हुआ जो किसी के साथ नही होना चाहिए।  किस प्रकार जिंदा बचकर वो और उनका बेटा भागकर चंडीगढ़ फिर चंडीगढ़ से दिल्ली आए। किस प्रकार उन्होंने अपना जीवन आगे बढ़ाया। दर्जनो मजदूर रखने वाले बागान मालिक के परिवार वाले दिल्ली में खुद मजदूरी करके बच्चों और खुद को जिंदा रखा। बांकी बातें उन्होंने नही बताई की उनके परिवार के साथ क्या हुआ। एक लड़की शायद जिंदा है लेकिन वो उनसे कभी मिल नही पाए। बांकी पुरुषों को नौकर चाकर सहित शायद मार दिया गया हो या क्या हुआ उन्होंने रोते हुए ये बात छिपा लिए।

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