अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस/International Men's Day पर पुरुष के शोषण के खिलाफ इस हास्य लेकिन संवेदनशील आलेख को पढ़िए आनंद आएगा।
पुरुषों पर सदियों से अत्याचार होते आएं हैं। लेकिन पुरुष इतने मासूम और भोले-भाले होते हैं की कभी इस विषय को उन्होंने छुआ ही नही, ना कभी इसके खिलाफ उन्होंने कोई आवाज उठाई गई है।
पुरुष मेहनत करते, जंगल से जड़ी-बूटी लाते, वर्षो तक औषधियों पर अभ्यास करते, लोगो का उपचार करते तब जाकर वैद्य कहलाते और उनकी श्रीमती जी उनके साथ रहते रहते मिसेज वैद्य वन जाती है। वही हालत आज भी है अपनी जवानी खपाकर, मेहनत कर, आंखों पर ढाई किलो का चश्मा लगाकर कोई नादान डॉक्टर बनता है और उनकी श्रीमती जी डाक्टरनी साहिबा बन जाती है।
यही हालत शिक्षकों का भी है। एक आदमी को मास्टर साहब बनने में कितने ऑफिस जाकर चपरासी से लेकर अधिकारियों के सामने अपने सिर फोड़ने पड़ते है, मास्टर बनने के बाद किस्म-किस्म के अच्छे, पढ़ाकू, शातिर, बदमाश, आवारा लौंडो के साथ अपनी दिनचर्या मैनेज करनी पड़ती है। और उनकी मैडम जी मास्टरनी साहिब बन जाती है और तो और कुछ लोग उन्हें प्रिंसिपल साहिबा भी कहने लगते हैं।
विदेशों में तो और भी हद है। पुरुषों को युद्ध में आगे भेजकर खुद को सदियों तक बचाती रही। पुरुष अगर राजा, महाराजा, किंग या बादशाह बनते तो अत्याचारी शोषक वर्ग भी रानी, महारानी, क्वीन, बेगम बन जाती।
आज का दौर देखिये! गौर फरमाइयेगा! महिला सशक्तिकरण के नाम महिलाओं को इतना बेजा अधिकार दे दिया गया है कि एक इशारे भर से लड़के भरे बाजार में पिटपिटा जाते है ऊपर से अगर पुलिस की नजर पड़ी तो देह में दर्द और बढ़ जाता है। पैसे जो इलाज में खर्च होते वो उसमे और बढ़ोतरी हो जाती है।
शादी से पहले एक पुरुष प्यासे भंवरे की तरह पता नही कितने फूलो के पास जाता है अगर कोई फूल उस पुरुष (जो अभी बना नही है) से सेट भी हो जाये तो उसकी एवज में उस पुरुष को अपनी नींद, अपना चैन, अपनी भूख-प्यास सबको भुलाकर खुद का शोषण करवाना है। गलियों की खाक छानने मे पेट्रोल के खर्चे सेट होने के बाद गिफ्ट और गोलगप्पे के खर्चे, उस फूल के अन्य संबंधियों के खर्चे अलग, कभी-कभी अपनी चहेती के एक्स और भावी आशिक यानी भूतकाल और भविष्य काल के आशिको के हाथों की सरकारी पिटाई भी खानी पड़ती है।
किसी से प्यार करके वो हिन्द महासागर के ऐसे मझधार में फंसता है जिससे उसे ब्रेकअप के बाद भी छुटकारा नही मिलता है। महबूबा से दूरी के बाद मुफ्त के पानी बताशे जैसी हालात हो जाती है यानी कि तब तक उसकी हालत रस चूसे लंगड़े आम की तरह नही हो जाती है तब उसे कूड़ेदान यानी फ़्रेंडजोन में नही धकेला जाता। 50 साल का घुन खाये हुए लकड़ी की फर्नीचर जैसी हालत से भी उस पुरुष से बेहतर होती है।
शादी-व्याह के बाद महिला अपने बेचारे पतियों पर इतने जुल्मो-सितम ढाते हैं कि उनके दर्द एक सच्चे और सताए हुए पुरुष ही समझ सकते हैं। माँ जहां जोरू का गुलाम कहकर ताने मरती है वही पत्नी अपने ही भोले पतियों को दूधपीता बच्चा और माँ का दुलारा, नकचढ़ा आदि कहने लगती है।
थोड़ी सी अनबन पर अपने कमजोर पति को धमकाती तो हैं ही अपने आवारा, लोफर व सड़कछाप भाइयों से पिटवाने तक कि धमकी देती रहती है। दहेज के ताने आदि बोल-बोलकर नौबत तलाक तक आ जाये तो बेचारे पुरुष पति के पूरे खानदान को जेल भेज सकती है।
शादी के बाद पुरुष या तो पत्नी की गुलामी या बंधुआ मजूरी करे या सामाजिक बदनामी के साथ जेल में रहे। तीसरा उपाय सुशांत सिंह राजपूत वाला ही बचता है।😀
महिला सशक्तिकरण आवश्यक है तो पुरुष सशक्तिकरण करने के लिए भी पूरे समाज को एकजुट होना चाईए। प्रधानमंत्री से एक मांग होनी चाईए की #महिलाआयोग की तरह एक #पुरुष आयोग का भी निर्माण किया जाए। जिसमे शोषित, वंचित एवं पीड़ित पुरुषों की भलाई एवं कल्याण हेतु कार्य हो।
पुरुषों पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ महिलाओं को भी आगे आना चाहिए। आखिर पुरुष भी तो किसी के पिता, भाई, पुत्र, दादा, मामा,चाचा,भतीजा इत्यादि होतें है।
आशा है आप लोग खुद जगें औरों को भी जगाएं, अपने आसपास पुरुषों पर होने वाले अत्याचारों को रोकने का प्रयास करेंगे और उन अत्याचारियों के खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे।
और अगर आप सच्चे पुरुष हैं तो इस पोस्ट को अपने शोषित पुरूष मित्रो तक अवश्य शेयर करेंगे। ☺️
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आपका शुभाकांक्षी
माधव कुमार
Happy World Toilet Day
Happy International Men's Day
नोट :- अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस/International Men's Day पर मेरे फेसबूक पोस्ट से साभार।
बहुत अच्छा लेखन
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब 👏👏
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