मुंशी प्रेमचंद गरीब नही बल्कि अपने नाम धनपत राय की तरह अमीर थे।

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लेखनी के धनी व महान कथाकार प्रेमचंद जी(नवाब राय) के बारे में कई विद्वानों के मुख और उनके लेखनी के द्वारा बचपन से सुनता आ रहा हूँ कि उनकी जिंदगी बड़ी मुफलिसी अथवा गरीबी में गुजरी थी।... 


मुंशी प्रेमचंद( गूगल से साभार)


क्या उनका जीवन सच में ऐसा था, अथवा उनके द्वारा रचित कहानी एवं उपन्यास में गरीबी अथवा विपन्नता के अत्यंत मार्मिक वर्णन के कारण लोग ऐसा समझने लगे हैं? 

एक कथाकार या उच्च श्रेणी का लेखक जितने शानदार ढंग से चरित्र चित्रण करता है, उनमें प्रेमचंदजी का स्थान हमेशा श्रेष्ठ रहेगा। धनपत राय या प्रेमचंद जी के साहित्य में आदर्शोन्मुख यथार्थवाद मुख्य विशेषता है। उनके रचित पात्र, घटनाएं, शैली, कहानी का उद्देश्य और उन कहानी के समानांतर चलते लेखक के विचार इतने सटीक होते हैं कि पाठक के अंतर्मन से जुड़ जाते हैं। पात्र और घटनाएं ऐसी लगती है जैसे वो अपने आसपास का व्यक्ति हो और वो घटनाएं आंखों के सामने चलचित्र की भांति घट रही हो। 


मुंशी प्रेमचंद( गूगल से साभार)


साहित्य में मुंसी प्रेमचंद जी(नाम में मुंशी शब्द कैसे आया इसके बारे में भी एक रोचक कथा है) कलम के धनी तो थे ही वो आर्थिक रूप से भी धनी थे। ये गप्प नही है वरन इसके कई प्रमाण है। 

मुंशी प्रेमचंद फ़ारसी, उर्दू, हिंदी, अंग्रेजी के जानकार थे। उन्होंने कुछ प्रसिद्ध लेखको की रचनाओं का हिंदी और उर्दू में अनुवाद भी करवाया था। जीवन में एक अध्यापक, सब इंस्पेक्टर, कथाकार, पत्रकार, संपादक व प्रकाशक का भी उन्होंने कार्य किया था।

कई पत्र पत्रिकाओं में वो लगातर छपते थे। उनके लेखन का पारिश्रमिक भी अन्य से अधिक ही प्राप्त होता था। उनकी मासिक सैलरी हमेशा अन्य संपादकों से अधिक रही। फिल्मों में भी उन्होंने वैतनिक लेखन किया, 
प्रेमचन्द ने 'जागरण' समाचार पत्र में सम्पादिकी एवं 'हंस' नामक मासिक साहित्यिक पत्रिका का कन्हैयालाल मुंसी जी के साथ सहसम्पादन किया था। उन्होंने सरस्वती प्रेस भी चलाया था। वे उर्दू की पत्रिका ‘जमाना’ में नवाब राय के नाम से लिखते थे। भारत में साहित्य में दलित विमर्श के शुरुआती साहित्यकार में से उन्हें माना जाता है। और भारत में वामपंथी विचारधारा को स्थापित करने में उनका योगदान प्रमुख है। प्रगतिशील लेखक संघ के संस्थापक सदस्य और पहले सभापति के रूप में खुद को स्थापित करके उन्होंने इसका प्रमाण भी दिया है।

मुंशी प्रेमचंद( गूगल से साभार)

सरस्वतीजी के पुत्र तो थे ही लेखन, संपादन और अनुवाद से उनपर हमेशा लक्ष्मीजी जी भी कृपावान रही। अंग्रेजी में एक कहावत है ना  Fortune favour the brave (लक्ष्मी पुरुसार्थ की चेरी है।) व्हाटसप पर एक मित्र द्वारा प्राप्त उनके कुछ आय से जुड़े जानकारी है कृपया देखिये पढ़िए।

यह पोस्ट प्रेमचंद जी पर दोषारोपण करने के लिए नही है। उनपर है जो उन्हें गरीब समझते हैं। हां ८ अक्टूबर १९३६ को निधन  से पहले वो लम्बी बीमारी से ग्रसित अवश्य रहे थे। उनका स्वास्थ्य सबन्धी अवश्य परेशानियां थी। इसका मतलब ये नही की वो एकदम विपन्न और भोजन के लिए तरसते थे(जैसा कि कुछ लोग उनके बारे में समझते हैं)।

नमन

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