भोज- समाज को जोड़ने की एक प्राचीन पद्धति।
हमारे यहां आज दो मृतक भोज था एक का आज पांच गांव का भोज था। तेरहवीं थी। दूसरे स्थान पर द्वादशा का।
आज आपको पारंपरिक ग्रामीण भोज की चरणबद्ध प्रक्रिया बताता हूँ।
भोज- समाज को जोड़ने की एक प्राचीन पद्धति। |
पहले समस्त मित्रो, परिजनों, अतिथियों को कार्ड(शोक-सन्देश) तो दिया ही जाता है।
- दोपहर में अरहांत(हकार या इनविटेशन) दिया जाता है।
- फिर भोज के समय विजय(बुलावा आता है कि सब कुछ रेडी है आइए जिमिये)।
भोज स्थल में जाने पर पहले पुवाल की एक नन्ही सी गट्ठर रहती थी। पुवाल के स्थान पर अब जाजिम और क्लॉथ सीट ने अपना मार्केट बना लिया है।
- आग्रह करके सबको बिठाया जाता है।
- पहले पत्तल और दोना(कटोरी) दी जाती है।
- ग्लास अपने घर से ले जाइए या प्लास्टिक के यूज़ एंड थ्रो ग्लास वहां दिए ही जाते हैं।
- ग्लास में पानी और पत्तलों पर पानी का छिड़काव होता है शुद्धिकरण हेतु।
- फिर भात(चावल) दिया जाता है। ग्रहण करने वाले उस भात(चावल) को गोल करके कुवां जैसा बना देते है।
- भात वाले कुवे में दाल परोसा जाता है।
- उसके बाद अन्य व्यंजन जैसे रायता, सब्जी, चटनी, नमक, पकोड़ी, पापड़ तिलोड़ी इत्यादि दिया जाता है।
- भोज करने वाले के औकात अनुसार व्यंजन की संख्या घट बढ़ सकते हैं। गुलाब जामुन के साथ-साथ रसगुल्ले जलेबी और बेशन की बुंदिया भी हो सकती है।
- अंत में बारी आती है *गरमागरम घी* की, पंगत में समस्त व्यक्तियों के पत्तल में भात-दाल पर गरमागरम घी परोसा जाता है।
- सभी पत्तल में घी परोसने के बाद घी वाला जोर से उद्घोष करते हैं #हो_हरि_हर
- #हो_हरि_हर शब्द एक सूचनात्मक उद्घोष है, ये शब्द सुनते ही पंगत में बैठे सभी व्यक्ति भोजन करना प्रारंभ कर देते हैं।
- अब सभी पंगत में बैठे व्यक्तियो को प्रेम से साग्रह अनुरोध करते हुए भात, दाल, सब्जी, रायता आदि परोसा जाता है।
- अंत में सामर्थ्य अनुसार गुलाबजामुन भी परोसा जाता है। अधिकांश जगह नही भी।
- सबके भोजन उपरांत अंत में *पाचन क्रिया को तीव्र करने हेतु दही, शक्कड़ और रामरस(यानी कि नमक)* परोसा जाता है।
Madhav Kumar
- पंगत में बैठे सभी लोग के भोजन से तृप्त होने के बाद अंतिम व्यक्ति के भोजन समाप्ति के पश्चात सब एक साथ उठते हैं।
- पंगत से अलग होकर कुल्ला आचमनी करते हैं।
- सभी लोग अपने-अपने घर की ओर प्रस्थान करते हैं और अचानक पीछे से बड़े-बुजुर्गों व गावँ के अभिभावकों की आवाज आती है।
Madhav Kumar
*छूटल-बढ़ल लोग के भी विजय भेलो* यानी अगर कोई व्यक्ति भूल वश नही आये या किसी के घर में कोई अतिथि आये हों तो उन्हें भी ससम्मान भोज स्थल पर भेज दें।
*समाज में सामंजस्य और जोड़ने की परिपाटी ऐसी परंपरिक पद्धति के अंतर्गत की जाती रही है।*
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गांव के भोज की तो बात ही क्या है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ब्लॉगर पुष्पम
हटाएंबढ़िया से बताया माधव एक एक चीज विस्तार से
जवाब देंहटाएंनंदनी जी आभार
हटाएंकुछ लोग ख़ास तौर पर वामपंथी विचारधारा वाले लोग इसे तो बंद ही करना चाहते है, उन्हे किया पता कि हमारे रीति रिवाज के पीछे अनेक वैज्ञानिक कारण भी हैं।
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