विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day)

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विश्व पर्यावरण दिवस की शुभकामनाएं।


पर्यावरण के संतुलन तो अब बीते जमाने की बात हो गयी अब पर्यावरण के  संरक्षण पर विश्व का ध्यान आकृष्ट हुआ है। पर्यावरण के संरक्षण हेतु  भूमि, जल, आकाश, वायु को शुद्ध करने ले स्थान पर मानव जीवन को संरक्षित करने वाले तत्व पर अब सभी प्रकृति प्रेमी, पर्यावरण विद ध्यान देने लगे है।

हमारे पर्यावरण के मूल घटक जीव, जंगल, नदियां और पर्वत के सरंक्षन हेतु  वृक्षों के महान् योगदान एवं भूमिका को स्वीकार करते हुए पौराणिक काल से मुनियों ने बृहत् चिंतन किया है। वेदों, पुराणों व उपनिषदों में भी वृक्षो के महत्व एवं महात्म्य को स्वीकार किया गया है।
मत्स्य पुराण में पर्यावरण का चिन्तन करते हुए करते हुए निष्कर्ष स्वरूप कहा गया है कि


दश कूप समा वापी, दशवापी समोहद्रः।
दशहृद समः पुत्रो, दशपुत्रो समो द्रुमः।

अर्थात
दस कुओं के बराबर एक बावड़ी होती है, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र है और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष होता है-

पुण्यार्जन और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए हमें ज्यादा अधिकाधिक वॄक्ष लगाने चाहिए।


इसीलिए प्रकृति के साथ साथ इसके सभी उपभागों को यथा नदियां, वन, कुवें, वृक्ष आदि प्राकृतिक शक्तियों में देवी के स्वरूप में अंगीकार किया गया है। की अवधारणा मात्र यह इंगित करती है कि हमसबको प्राकृतिक शक्तियों की रक्षा अवश्य करनी चाहिए। यथा सम्भव इनके साथ सह-अनुराग रखना चाहिए और स्वस्थ, संतुलित जीवनयापन करते हुए पर्यावरण की यथाशक्ति रक्षा करनी चाहिए।

इन शब्दो को यदि नैतिकता-अनैतिकता के पैमाने पर ना भी तौलें किसी समय रेखा में न भी बांधें तो भी वृक्ष प्रकृति और प्राकृतिक के समस्त संसाधनों के संरक्षण के संवाहक होते हैं। भारतीय अध्यात्म और चिंतन-धारा की यही प्रमुख विशेषता है  की हम अपने मूल को जानें जो इस प्रदूषण-अभिशप्त सदी में विभिन्न प्राकृतिक आपदाएं एवं बीमारियां हमें अपने अतीत से सीख लेने और प्राकृतिक रूप से जीवन को स्थापित करने हेतु की बार-बार याद दिला रही।

माता पृथ्वी, 

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