Engineer's Day: भारत की तकनीकी दक्षता, अभियांत्रिकी कौशल, उन्नत वास्तुकला और निर्माण कलाओं में प्राचीन काल से ही समृद्ध रहा है। जिनमें विभिन्न वैभवशाली महल, जल प्रबंधन, विप्लव मंदिरो का निर्माण, सड़क निर्माण, विश्वविद्यालय, सूचना प्रणालियों, विभिन्न क्षेत्रों में उपयोगी अनेक उपकरणों का विकास और संरचनाओं का प्रबंधन अनन्य उदाहरण है। भारत में आज भी कई प्राचीन संरचनाएं हैं जो अद्वितीय इंजीनियरिंग उपलब्धियों का प्रतीक हैं। प्रत्येक वर्ष 15 सितंबर को सृजनात्मकता के उत्सव के रूप में राष्ट्रीय अभियंता दिवस (National Engineer's Day) मनाया जाता है। यह दिन सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (Sir Mokshagundam Visvesvaraya) के जयंती को समर्पित है। उन्होंने तकनीकी क्षेत्र में विकास के साथ समाज और देश की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान किया है। भारत के एक प्रसिद्ध इंजीनियर और महान दूरदर्शी लोगों में से एक थे। उन्होंने आधुनिक भारत को आकार देने और इसे एक नई पहचान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आइए जानते है भारत के महान अभियंता सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (Mokshagundam Visvesvaraya) जी के बारे में।
Engineer's Day: Sir M.Visvesvaraya |
कम उम्र में हुआ पिता का निधन, शिक्षा को बनाया जीवन उद्देश्य।
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (M. Visvesvaraya) का जन्म 15 सितंबर, 1860 को मैसूर में हुआ था जो अब कर्नाटक राज्य का हिस्सा है। उनके पिता श्रीनिवास शास्त्री एक संस्कृत विद्वान और उनकी माँ वेंकचम्मा' एक धार्मिक महिला थी। 15 साल की उम्र में ही उनके पिता का निधन हो गया। लेकिन अपनी शिक्षा जारी रखने का दृढ़ संकल्प करके सन 1881 में बैंगलोर पहुंचे और मद्रास विश्वविद्यालय से संबद्ध सेंट्रल कॉलेज, बैंगलोर से बैचलर ऑफ आर्ट्स (बी.ए.) की परीक्षा उत्तीर्ण की। कॉलेज के दिनों में आर्थिक तंगी से बचने हेतु ट्यूशन पढ़ाकर उपार्जन किया करते थे। इसके बाद, उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पुणे के कॉलेज ऑफ साइंस में दाखिला ले लिया। 1883 में, उन्होंने एलसीई (सिविल इंजीनियरिंग में लाइसेंसधारी) और एफसीई (सिविल इंजीनियरिंग में फेलोशिप) परीक्षाओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, जो आज की बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग (बी.ई.) डिग्री के बराबर थी।
सहायक इंजीनियर से हुई कैरियर की शुरुवात, किया एशिया के सबसे बड़े जलाशय का निर्माण।
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (M. Visvesvaraya) की कैरियर यात्रा बॉम्बे सरकार से नौकरी की पेशकश के साथ शुरू हुई, जहां उन्होंने नासिक में सहायक इंजीनियर के रूप में काम किया। एक इंजीनियर के रूप में उन्होंने कई उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की। उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर गांव तक जल आपूर्ति प्रणाली के निर्माण का निरीक्षण किया और सिंचाई के लिए अभिनव "ब्लॉक सिस्टम" की शुरुआत की। उन्होंने पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने, बाढ़ के दौरान क्षति को रोकने के लिए बांधों में स्टील के दरवाजे लगाए। उनके उल्लेखनीय इंजीनियरिंग कार्य की प्रशंसा भारत सहित अन्य देशों में भी होने लगी। मैसूर राज्य में उनके निर्माण कार्य से प्रसन्न होकर मुख्यमंत्री (दीवान) का पद दिया गया था। उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक मैसूर में कृष्ण राजा सागर बांध का निर्माण था, जिसने जल प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह बांध उस समय एशिया का सबसे बड़ा जलाशय था।
आधुनिक भारत के विश्वकर्मा बने मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (M. Visvesvaraya)
विश्वेश्वरैया का योगदान व्यक्तिगत परियोजनाओं से कहीं आगे तक फैला हुआ था। आजादी से पहले उन्होंने भारत में कई संस्थानों और उद्योगों के निर्माण और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मैसूर राज घराने में कार्यरत रहते हुए कर्नाटक में कई उद्योगों की स्थापना भी उन्होंने ही किया। उन्होंने मैसूर साबुन फैक्ट्री, पैरासिटोलॉजी प्रयोगशाला, मैसूर आयरन एंड स्टील वर्क्स, श्री जयचामाराजेंद्र पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट, बैंगलोर कृषि विश्वविद्यालय, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, सेंचेरी क्लब, मैसूर चैंबर ऑफ कॉमर्स और यूनिवर्सिटी, विश्वेश्वरैया कॉलेज की स्थापना की। आजादी के उपरांत भारत के कई राज्यों में पुल निर्माण, जलाशय, बांध, बिजली स्टेशन, सरकारी महत्व के भवन एवं संस्थानों के निर्माण में इनका निरीक्षण और परामर्श आवश्यक माना जाता था। इन अभियांत्रिक, बैंकिंग, शैक्षणिक, राजनयिक संस्थानों के निर्माण से न केवल भारत के आर्थिक विकास में योगदान दिया बल्कि भारतीय नागरिकों के लिए शैक्षिक और रोजगार के अवसर भी प्रदान किए हैं। महंगे सीमेंट और भारत में अनुपलब्धता के कारण उनके मार्गदर्शन में इंजीनियरों द्वारा सीमेंट से मजबूत 'मोर्टार' का निर्माण भी किया गया था।
इंजीनियरिंग की व्यस्त जीवनशैली में भी चिर युवा एवं शतायु जीवन रहा।
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (M. Visvesvaraya) अपनी सादगी, आदर्शवादिता, परिश्रम और अनुशासन के लिए जाने जाते थे। उनकी दिनचर्या संयमित, स्वस्थ, शुद्ध शाकाहारी और सक्रिय जीवनशैली वाली थी, हमेशा साफ़ सुथरे कपड़े पहनते थे। अपने समय के हर मिनट को महत्व देते थे। अपने कार्य की पूर्णता में विश्वास करते थे और सावधानीपूर्वक भाषण तैयार करते थे, अक्सर उन्हें देने से पहले कई बार उनका अभ्यास करते थे। अपनी बढ़ती उम्र के बावजूद, उन्होंने सक्रिय जीवनशैली अपनाई और शारीरिक रूप से फिट रहे। अपने काम के प्रति उनके समर्पण और अटूट प्रतिबद्धता ने उन्हें कई लोगों के लिए प्रेरणा बना दिया।
1952 में बिहार में गंगा नदी के ऊपर बनने वाली विश्व प्रसिद्ध सड़क सह रेलवे पुल 'राजेंद्र सेतु' निर्माण योजना में निरीक्षण के समय उनकी उम्र 92 वर्ष थी। तपती धूप में छड़ी के सहारे गंगा तट पर पैदल ही पूरा साइट विजिट करते थे। ज्ञात हो कि विश्व प्रसिद्ध राजेंद्र सेतु समस्त भारत को उत्तरपूर्व से जोड़ने वाला एकमात्र पुल है जो मुंगेर (अब बेगूसराय)-पटना गंगा नदी पर बनी है। एक बार उनसे पूछा गया की सर आप थकते नहीं है आपके चिर युवा होने का रहस्य क्या हैं? तब उन्होंने कहा था की "जब बुढ़ापा मेरा दरवाज़ा खटखटाता है तो मैं जवाब देता हूं कि विश्वेश्वरैया घर पर नहीं है, और वह निराश होकर लौट जाता है।"
राष्ट्र अभियंता को मिला 'भारत रत्न' और सम्मान में जारी हुए डाक टिकट।
भारत के विकास में मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (M. Visvesvaraya) के योगदान को व्यापक रूप से मान्यता और सराहना मिली। उन्हें सन 1955 में भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'भारत रत्न' से विभूषित किया गया था तथा कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया था। भारत सरकार ने उनकी उपलब्धियों और समाज में इंजीनियरों के योगदान का जश्न मनाते हुए मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के सम्मान में उनके 100 वें वर्षगांठ पर 15 पैसे का एक डाक टिकट भी जारी किया गया था।
जब विश्वेश्वरैया का नाम लेने में लड़खड़ाई थी राहुल गांधी की जुबान, हुए थे बुरी तरह ट्रोल।
जब 2018 में कांग्रेस के तात्कालिक अध्यक्ष राहुल गांधी एक चुनावी सभा में कर्नाटक में भाषण देने के दौरान प्रधानमंत्री पर तंज कसा और कर्नाटक के दिग्गजों के नाम ले रहे थे, कर्नाटक दिग्गजों का नाम लेते हुए उनकी खुद की जुबान लड़खड़ा गई। इस रैली में उन्होंने कहा था, ''बड़े-बड़े नाम हैं, टीपू सुल्तान जी, कृष्ण राजा वडियार, विश्वस्वे… विश्वा… रैया… विश्वरैया… फिर राहुल गांधी झेंपते हुए (मुस्कुराने लगे)...कुवेंपू जी...'' विश्वेश्वरय्या के नाम के संबोधन में उनके जुबान का लड़खड़ाना भारी पड़ा। सोशल मीडिया पर सदैव की भांति सोशल मीडिया यूजर्स उन्हे ट्रोल करने लगे और उनके मिम्स वायरल होने लगे।
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (M. Visvesvaraya) का जीवन और उपलब्धियां उन्हें इंजीनियरिंग उत्कृष्टता और समर्पण का प्रतीक बनाती हैं। उनके दूरदर्शी विचार और इंजीनियरिंग चमत्कार उनके निधन के बाद भी भारत को लाभान्वित कर रहे हैं। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उनका योगदान और भारत की भलाई के प्रति उनका समर्पण असाधारण था। भारत सरकार उनकी जयंती, 15 सितंबर को 'राष्ट्रीय अभियंता दिवस' के रूप में मनाती है। सर एमवी के महान कार्य इंजीनियरों की पीढ़ियों को सदैव प्रेरित करती रहेगी और उनके दक्षता, कार्यप्रणाली, दूरदर्शिता और समर्पण की शक्ति की सदैव याद दिलाती रहेगी।
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