इतिहास से छेड़-छाड़ सामान्य है। पढ़िए इतिहास का भूगोल बदलने वाले एक महान नायक की कथा |
इतिहास से छेड़-छाड़ मुझसे भी बहुत बार हुई है...."शैतान औरंगजेब" को' अकबर' का कभी बाप तो कभी बाबा बना दिया करता थ, जबकि असल में वो उसका पोता था।
जहांआरा, अफजल, महबूब या मुमताज जैसे नाम में इतने दिक्कतें आती थी कौन किसकी बेगम, किसकी अम्मा, कौन चाचा, कौन किसका सिपहसालार, कौन किसका बेटा, बादशाह के उपनाम या उसका खास नाम बहुत दिक्कतें होती थी। मुगल खानदान के अलावे भी किसी किसी विदेशी अक्रांता के नाम पढ़कर ही लगता था की मुंह में बलगम आ गया हो। और बाद में थूकना पड़ता था।
कुछ ऐतिहासिक नाम तो ऐसे थे की पढ़कर हंसी भी आती थी। और अपने सहपाठियों में लक्षण मिलने पर वैसा नाम रखा जाता था। जैसे एक सहपाठी का शरीर एकदम दुबला पतला और मुंडी(सिर) बहुत बड़ा था उसका नाम बीरबल रखा था ज्यादा बुद्धि होने से शरीर बहुत ही दुबला था लेकिन माथा बहुत बड़ा। ऐसे ही एक बहुत ही डरपोक किस्म का साथी था शौचालय जाने में भी उसे एक साथी की जरूरत पड़ती थी तो उसका नाम सबने महाडरपोक अकबर रख दिया था।
हमारे आसपास तिलक, सावरकर, भगत सिंह, आजाद, उधम सिंह, पटेल साहब, सुभाष जी जैसे उपनाम वाले देशभक्त साथी भी थे, यही नही क्लास में फूट डालकर दो टुकड़े करने वाले स्व घोषित क्लास के बाप चाचा कहलाने वाले शांति वादी अहिंसक गांधी, नेहरू और जिन्ना भी थे। ज्यादा पीटने वाले शिक्षक को किसी खूंखार अंग्रेजी लॉर्ड या वायसराय की संज्ञा दी जाती थी।
और बेगम जैसा शब्द पढ़कर या पुराने सिनेमा में किसी जुम्मन, रहीम चाचा या अब्दुल जैसे अभिनेताओं के मुंह से सुनकर लगता था की बेगम मतलब किसी अभिनेता की गरीब, असहाय, लाचार जैसी गुर्बत में जीने वाली औरत को कहते हैं। मुझे क्या पता था की बेगम मतलब नगरवधु होता है। शायद मैं अब भी गलत हो सकता हूं।
टीपू सुलतान और राजिया सुलतान के नाम में भी बहुत दिक्कत होती थी कौन पुरुष, कौन महिला समझ में ही नहीं आता था। ऊपर से खिलजी का दूसरे पुरुष के साथ रहना ने उसी समय LGBTQ समाज के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी दे चुका था। ऊपर से किसी सिनेमा में सुल्ताना बेगम तो और भी नीम चढ़ा करेला टाइप दिमाग में दही कर देती थी नूरुद्दीन मुहम्मद मिर्जा की बेटी ' सुल्ताना बेगम' पहले अकबर के उस्ताद बेरहम शैतान बैरम खान की बीबी थी फिर अकबर ने उसे मारकर बैरम खान की मरहूम सुल्ताना को अपनी बेगम बना लिया। फिर सुल्ताना डाकू नामक सिनेमा भी आ गया था, अब इस दिमाग में किस सुल्ताना को रखें सब अकबर के पप्पा बीरबल जी की खिचड़ी हो जाती थी।
इतिहास में मुझसे भी बहुत भूल-चूक हुई है, अगर कोई कहें तो थोड़ा सा शर्मिंदा भी हो सकता हूं। लेकिन मुझे साल और तारीखें बखूबी याद रहते थे।
आपकी पोस्ट तो उम्दा है, लेकिन इतिहास से छेड़ छाड़ के तो हम इतने बड़े भुगतभोगी हैं, कि 10 रुपये में अकबर बीरबल की कहानी में अकबर से बड़ा मूर्ख कोई है ही नही, और इतिहास में पढ़ते रहे अकबर महान है।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल
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