हमारे छत पर तोते, मैना, गौरैया और कौवे आते रहते थे। तोते तो मिर्च और मक्के के दाने खाने के लिए ही आते थे। बांकी पक्षी के लिए रोटी के टुकड़े अनाज के दाने रहते ही थे। अब ये किस्से का मुख्य पात्र तोता है। तो विषयांतर ना होते हुए तोते पर ही आता हूं। छत पर आने वाले तोतों के झुंड में K एक तोता थोड़ा कुपोषित लगता था सबसे अलग-थलग रहता था। आंगन की सारी बहने बोलती की उस तोते को बोलना आता है। कुछ को विश्वास होता कुछ को नही। एक दिन सब भाई बहन भतीजा उस तोते को पकड़ने की योजना बनाएं। जहां वो तोता अकेला दाना चुगता वहां जाकर सभी बच्चे सारे तोते को भगा दिए और सब वहीं पर रजाई ओढ़कर छिपकर लेटे रहे थोड़ी देर बाद सारे तोते आकाश में 3-4 राउंड लगाकर वापस दाने खाने बैठ गए। अब आजाद रहने वाले तोते चालाक होते है, वो किसी के पकड़ में नही जिसने पकड़ा उसको चोंच मारकर लहूलुहान अलग कर दिया।
बचपन हर गम से बेगाना नही होता है। एडिटिंग Canva |
संयोग से कुपोषित तोता के पास मैं ही था। दुसरो की हालत देखकर अपना पजामा खोलकर उसको तोते के ऊपर डाल दिया और तोता पकड़ लिया। *मैं अंतः वस्त्र पहने हुए था।* और गांव में सामान्य बात है छोटे बच्चों के लिए।
फिर एक पुराने पिंजरे को किसी से मांग कर लाया और तोते को उस पिंजरे के पास लेकर गया, पिंजरे का गेट खोलते ही तोता झट से पिंजरे के अंदर में ऐसे चला गया जैसे अपने घर में गया हो। पिंजरे में घुसते ही खुशी से सिटी मारने लगा। चित्रकूट के घाट पर लगे संतन की भीड़, मिठू सीताराम मिठू सीताराम आदि आदमी के आवाज में बोलने लगा था। वो किसी के पिंजरे से भगा हुआ तोता था, और उसे मानव आवाज में बोलने का अच्छा खासा अभ्यास था, शायद इसी कारणवश इतनी आसानी से पकड़ में आ गया था। पिंजरे में रहने के कारण ही अन्य तोते उसे अपने झुंड से अलग रखते थे और चोंच भी मारकर भगाते रहते थे।
3-4 दिन पिंजरे में मौज में रहा उसके बाद जब भी छत पर तोते आते तो पिंजरे के अंदर ही अपने पंख फैलाकर उड़ने का अभ्यास करता रहता था। दो दिनों में ही आसपास के सारे बच्चों से हिलमिल गया था उसे पिंजरे से बाहर निकालकर स्वतंत्र करने का विचार मन मे बहुत बार आया कि अब इस तोते को पिंजड़े से आजाद कर देता हूँ, लेकिन सारे बच्चे मैं भी बच्चा ही था। सब रुआँसे हो जाते । बड़ों के कहने पर एक महीने बाद इस तोते को अंततोगत्वा स्वतंत्र कर ही दिया गया। शायद स्वतंत्रता सबको ही प्यारी होती है। उस तोते ने सभी बच्चों के प्रेम और अपनत्व को भुलाकर उड़ने लगा। पहले पिंजरे पर बैठा, फिर छत पर फिर छत की रेलिंग पर उसके बाद दूसरे के छत पर फिर पीपल के पेड़ पर यानी की अपनी छोटे- छोटे उड़ान की सहायता 10 मिनट में आंखो से ओझल हो गया।
उसके आजादी के बाद तक भी एक सप्ताह तक सभी बच्चे स्कूल से आते तो सबका चेहरा ऐसा लटका हुआ लगता जैसे होस्टल से पहली बार घर आये बच्चे को वापस होस्टल जाना पड़ रहा हो। सबका चहेता प्यारा तोता कहीं स्वतंत्रता की सांस ले रहा होगा।